हर्र
यह आम के वृक्ष के समान बड़ा होता है। वृक्ष के दो पत्ते आमने सामने मोटे और अमरुद के पत्तों के समान तथा कोमल लाल रंग के होते हैं। हर्र डेढ़ इंच तक लम्बी होती है। इसको सुखाने पर इसकी छाल पर खड़ी पाँच रेखायें हो जाती हैं। उत्तर भारत के कोकण में व गुजरात में इसकी पैदावार अधिक होती है।
लाभ व उपचार
साधारण जुलाब में इसे लेना लाभप्रद होता है। इसके अन्दर लम्बा बीज निकलता है हर्र जितनी नई हो उतनी ही अधिक गुणकारी होती है। हर्र के फल की छाल सब प्रयोगों में लें। हर्र की सात जाती है :- 1 . विजया , 2 . रोहिणी , 3 . पूतना , 4 . अमृता , 5 . अभया , 6 . जीवन्ती , 7 . चेतकी , इसमें विजया हर्र का आकार तोम्बी के समान गोल होता है। यह विन्ध्याचल पर्वत पर उपजती है। रोहिणी हर्र गोल होती है , इसके बीज बड़े होते हैं। पूतना हर्र पतली रेखावाली होती है , इसके बीज बड़े होते हैं , यह हिमालय पर्वत पर उत्पन्न होती है। अमृता हर्र मोटी और रेखावाली होती है। उसमें गूदा बहुत होता है , गुठली छोटी होती है। यह किष्किन्धा के समीप पम्पासर में उत्पन्न होती है। अभया हर्र भी पम्पासर में उत्पन्न होती है। यह पाँच रेखावाली होती है। जीवन्ती हर्र महाराष्ट्र (सूरत)प्रदेश में उपजती है और सुवर्ण के समान पीली होती है। चेतकी हर्र हिमालय पर्वत पर होती है और तीन रेखाओं वाली होती है। विजया हर्र सब हर्रो से उत्तम होती है। इसको सब रोगों में देना चाहिये। पूतना हर्र लेप के काम में लेनी चाहिये। रोहिणी हर्र घाव के निमित्त काम में लेनी चाहिये। अभया हर्र नेत्र रोग में हितकारी है। जीवन्ती हर्र सब रोगों को हरती है। चेतकी हर्र चूर्ण बनाने हेतु काम में लेनी चाहिये। चेतकी हर्र दो प्रकार की होती है :- 1 . काली 2 . सफेद। काली एक अंगुल लम्बी और सफेद छः अंगुल लम्बी होती है। कोई हर्र खाने से , कोई सूघने से , कोई देखने से , कोई छूने से दस्त लाती है। मनुष्य , पशु आदि कोई भी चेतकी हर्र के नीचे छाया में जाकर खड़ा होता है , तो उसे दस्त हो जाते हैं। चेतकी हर्र के वृक्ष काबुल में पाये जाते हैं। चेतकी हर्र सुकुमार , दुर्बल शरीर , प्यास से युक्त और औषण से द्वेष करने वालों को सुखपूर्वक जुलाव लेने के लिए श्रेष्ठ होती हैं।
उपरोक्त सातों हर्रो में विजया हर्र सबसे अधिक श्रेष्ठ होती है। यह सर्वत्र मिलती है और सब रोगों में हितकारी है। हर्र की मज्जा में मधुरता , स्नायु में अम्लता , परदे में तिक्तता , छिलके में कडुवापन और अस्थि में कसैलापन होता है। हर्र नई गोल , चिकनी ,भारी , जल में छोड़ने पर डूब जाने वाली होती है। भुनी हुई हर्र त्रिदोष को दूर करती है और बल बुद्धि तथा इन्द्रियों को प्रकाश देने वाली होती है। चबाकर खाई हुई हर्र अग्नि को बढ़ाती है। पिसी हुई हर्र खाने से मल की शुद्धि होती है। तली हुई हर्र खाने से संग्रहणी रोग दूर होता है। इसमें मीठा , कडुआ , कसैला रस पित्तनाशक है , खट्टा रस वातनाशक है और तिक्त , कटु , कसैला रस कफनाशक होता है।
गुड़ के साथ सेवन करने से हर्र सर्व रोग नाशक है। घी के साथ सेवन करने से हर्र घात नाशक है। लवण के साथ सेवन करने से हर्र कफ को शान्त करती है। शहद के साथ सेवन करने से हर्र पित्त नाशक है।
बसन्त ऋतु में शहद के साथ , ग्रीष्म ऋतु में गुड़ के साथ , वर्षा ऋतु में सेंधा लवण के साथ , शरद ऋतु में मिश्री के साथ , हेमन्त ऋतु में सोंठ के साथ , शिशिर ऋतु में पीपर के साथ हर्र का सेवन करें।
औषधि के रूप में प्रयोग के लिए हर्र की छाल आधे ग्राम की मात्रा में सेवन करें। हर्र के अवगुण को नीबू का रस शान्त करता है। शहद चाटने से भी हर्र का उपद्रव शान्त हो जाता है। हर्र को 10 ग्राम से अधिक मात्रा में भी ली जा सकती है। हर्र गरम, खुश्क , अग्नि को प्रदीप्त करने वाली , व हल्की होती है। यह वायु और मल को नीचे उतारती है। एक हर्र जवा अर्थात् जो छोटी होती है उसको भूनकर प्रति दिन प्रातः नमक के साथ खाने से उदर विकार नहीं होता है। हर्र को प्रातः वैद्यजन सेवन करने के निमित्त स्वादिष्ट बताते हैं। हर्र को स्वादिष्ट इस प्रकार बनाऐं :- हर्र साफ बड़ी और नई हर्र को 10 ग्राम गाय के मठा में अथवा गरम जल में भिगोदें , तीसरे दिन निकाल कर उसमें से गुठली अलग कर सेंधा नमक , सोंठ , काली मिर्च , जीरा पीसकर अनुमान से भर देवें फिर चीनी मिट्टी के अमृतवान में भरकर कुछ देर धूप में रख छोड़ें। इसके सेवन से पेट विकार दूर हो जाते हैं।
हर्र ,बहेड़ा , आँवला इनके मिक्सचर को त्रिफला कहते हैं। त्रिफला को संध्या के समय भिगो देवे , प्रातः छानकर उससे नेत्र धोवें तो सभी प्रकार के नेत्र सम्बन्धी रोग शान्त हो जाते हैं। सन्ध्या का भिगोया हुआ त्रिफला प्रातः छानकर नमक मिलायें। इसके पीने से खासी कफ रोग दूर हो जाता है। अकेली हर्र को जल के साथ घिस गरम कर पलक के ऊपर लेप करने से नेत्र रोग दूर हो जाता है। जो व्यक्ति चलने से थका हुआ हो या जिसे धातु विकार हो या जिसका रुधिर निकाला गया हो या जो गर्भिणी स्त्री हो , को हर्र नहीं खाना चाहिये। जिसको ज्वर आता हो उसको पीली हर्र नहीं खाना चाहिये।