ऑवला
ऑवला का वृक्ष बड़ा व शाखी जाति का होता है। यह हिन्दुस्तान के प्रत्येक राज्य के जंगलों में व बगीचों में पाया जाता है। इसके पत्ते इमली के पत्तों के समान छोटे होते हैं , फूल पीला होता है तथा पीली भूमि पर इसके वृक्ष होते हैं। माघ फाल्गुन मास में इसके फूल आते हैं , इस फल पर छः रेखायें बनी रहती हैं। ऑवले में एक लवण रस को छोड़कर शेष 5 रस होते हैं। इसका लोग मुरब्बा , अचार बनाते हैं। यह शीतल तथा रुखा होता है।
लाभ व उपचार
यह रक्त पित्त और प्रमेह रोग को दूर करता है। खट्टा रस , मधुर और शीतल गुण से पित्त को ताजा रखता है और कसैले गुण से कफ को हरता है। इस प्रकार यह त्रिदोष को दूर करता है। प्यास को शान्त करता , मैथुन शक्ति को बढ़ाता तथा वमन को रोकता है। यह थकान को दूर करता है तथा अजीर्ण को हरता और तिल्ली को अवगुणकारी है। इसका रिऎक्शन शहद के प्रयोग से दूर होता है। ऑवला के फल की गूदी लेनी चाहिए। इसकी मात्रा चार ग्राम की है। रोग को दूर करने के लिए आँवला की चटनी आँवला भूनकर बनावे। इसके खाने से कफ दाह , कफ और पित्त की शान्ति होती है। इसका मुरब्बा भी पित्त , दाह , कफ और शरीर की गरमी को शान्त करता है। आँवला का सिकंजवी अत्तार लोग बनाते हैं। पित्त और गरमी में रोगी को देते हैं आँवला की गूदी भिगोकर उसके पानी से सिर को धोवें तो बाल सफेद नहीं होते हैं तथा बाल काले रहते हैं व नजला नहीं उतरता। इसकी गुठली और पत्तो में भी अनेक गुण होते हैं जैसे :- आमला की पत्ती की राख खाने से खाँसी शान्त होती है। आँवला ,हर्र , बहेड़ा इन तीनों को त्रिफला कहते हैं। त्रिफला सब रोगों को दूर करती है। आँवले को तेल में मिलाकर लगाने से खुजली दूर होती है। गाय के दूध में सूखे आँवले का चूर्ण खाने से स्वरभेद दूर होता है। आँवला का रस शहद और पीपल के साथ प्रयोग करने पर यह कफ और श्वास को अच्छा करता है। आँवला का रस हल्दी के साथ प्रयोग करने पर वह प्रमेह को दूर करता है। सूखे आँवले को घी में भूनकर पानी में पीस कर माथे पर लेप करने से नाक से खून का गिरना बन्द होता है। आँवले का रस घी के साथ पीने से मूर्छा दूर होती है। आँवले का रस शहद के साथ प्रयोग करने से पित्तशूल दूर होता है। आँवले का रस अम्लपित्त को दूर करता है। आँवले खाने से शरीर में , जल्दी वृद्धावस्था नहीं आती।
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