बहेड़ा
विशेषकर बहेड़ा श्वास , खाँसी , बवासीर , शोद , कोढ़ , कृमिरोग , उदार विकार , अफरा , गुल्म , प्यास , हिचकी , कामला , अजीर्ण , आनाह , प्लीहा , शूल , पथरी , यकृत , सूजाक , मूत्रघात इन रोगों में लाभप्रद है। उँगलियों का सड़ना भी बहेड़ा के लगाने से दूर होता है।
यह वृक्ष काफी लम्बा चौड़ा व ऊँचा होता है। यह पथरीली भूमि पर पैदा होता है। महुवा के पत्ते के सदृश्य इसके पत्ते होते हैं। इसका फूल छोटा होता है तथा फल जायफल से कुछ बड़ा होता है। 10 या 12 ग्राम तक इसका फल होता है। इसकी मात्रा 2 ग्राम तक है।
लाभ व उपचार
प्रयोग में इसके फल की छाल दी जाती है। इसकी गूदी लेप करने से दाह शान्त होता है। यह खाने में गरम है। लगाने में ठण्डा व रुखा होता है , नेत्रों के लिए गुणकारी होता है। इसका वक्कल खाँसी को दूर करता है। कृमि रोग और स्वर दोष को शान्त करता है। सर्दी , प्यास , वात और कफ को शान्त करता है। इसकी प्रतिनिधि छोटी हर्र है , अर्थात् जब बहेड़ा न मिल सके तो छोटी हर्र से काम चलाया जा सकता है। बहेड़े का अवगुण शहद के प्रयोग से दूर होता है।
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