बुधवार, 17 मई 2023

दाऊदी पीले फूल वाली

दाऊदी पीले फूल वाली  

पीले फूल की दाऊदी के पत्ते पीस कर गाय के मट्ठा में उवाल लें। फिर और उसको जहर बाद के ऊपर बाँधे तो पांच छः दिन में फोंड़ा अच्छा हो जाता है , अथवा केवल पत्तों को बिना पीसे हुए , मट्ठे में उबालकर बाँधने से रोग शान्त हो जाता है। 

पानड़ी

पानड़ी 

पानड़ी का वृक्ष छोटा होता है , इसका अतर सूँघने से मस्तक पीड़ा दूर हो जाती है। अतर को गरम कर दिन में चार बार मस्तक पर लगाने से सिर की पीड़ा शान्त हो जाती है। पानड़ी के अतर में जायफल घिसकर मिलावै। इस अतर को दो तीन बार सूँघे तो सरसाम रोग शान्त हो जाता है।  

चमेली

चमेली 

चमेली का वृक्ष छोटा होता है। चमेली के फूल सफेद होते हैं। 

लाभ व उपचार 


चमेली के फूल व अतर सूंघने से मस्तक पीड़ा , हृदय की जलन और शरीर की गरमी शान्त होती है ,परन्तु सर्दी से सिर दुखता हो तो चमेली का फूल और अतर नहीं सूंघे। चमेली के पत्ते पानी में उवाल लें फिर उस पानी से कुल्ली करने पर मुख के छाले ठीक हो जाते हैं। चमेली के पत्तों का अर्क पीने से मूत्र रोग अच्छा हो जाता है। इसकी पत्ती के रस को तिल के तेल में पका कर छान लेवें , इस तैल के लगाने से लिंगेन्द्रिय की वृद्धि होती है।  

ऑवला

ऑवला  

ऑवला का वृक्ष बड़ा व शाखी जाति का होता है। यह हिन्दुस्तान के प्रत्येक राज्य के जंगलों में व बगीचों में पाया जाता है। इसके पत्ते इमली के पत्तों के समान छोटे होते हैं , फूल पीला होता है तथा पीली भूमि पर इसके वृक्ष होते हैं। माघ फाल्गुन मास में इसके फूल आते हैं , इस फल पर छः रेखायें बनी रहती हैं। ऑवले में एक लवण रस को छोड़कर शेष 5 रस होते हैं। इसका लोग मुरब्बा , अचार बनाते हैं। यह शीतल तथा रुखा होता है। 

लाभ व उपचार 

यह रक्त पित्त और प्रमेह रोग को दूर करता है। खट्टा रस , मधुर और शीतल गुण से पित्त को ताजा रखता है और कसैले गुण से कफ को हरता है। इस प्रकार यह त्रिदोष को दूर करता है। प्यास को शान्त करता , मैथुन शक्ति को बढ़ाता तथा वमन को रोकता है। यह थकान को दूर करता है तथा अजीर्ण को हरता और तिल्ली को अवगुणकारी है। इसका रिऎक्शन शहद के प्रयोग से दूर होता है। ऑवला के फल की गूदी लेनी चाहिए। इसकी मात्रा चार ग्राम की है। रोग को दूर करने के लिए आँवला की चटनी आँवला भूनकर बनावे। इसके खाने से कफ दाह , कफ और पित्त की शान्ति होती है। इसका मुरब्बा भी पित्त , दाह , कफ और शरीर की गरमी को शान्त करता है। आँवला का सिकंजवी अत्तार लोग बनाते हैं। पित्त और गरमी में रोगी को देते हैं आँवला की गूदी भिगोकर उसके पानी से सिर को धोवें तो बाल सफेद नहीं होते हैं तथा बाल काले रहते हैं व नजला नहीं उतरता। इसकी गुठली और पत्तो में भी अनेक गुण होते हैं जैसे :- आमला की पत्ती की राख खाने से खाँसी शान्त होती है। आँवला ,हर्र , बहेड़ा इन तीनों को त्रिफला कहते हैं। त्रिफला सब रोगों को दूर करती है। आँवले को तेल में मिलाकर लगाने से खुजली दूर होती है। गाय के दूध में सूखे आँवले का चूर्ण खाने से स्वरभेद दूर होता है। आँवला का रस शहद और पीपल के साथ प्रयोग करने पर यह कफ और श्वास को अच्छा करता है। आँवला का रस हल्दी के साथ प्रयोग करने पर वह प्रमेह को दूर करता है। सूखे आँवले को घी में भूनकर पानी में पीस कर माथे पर लेप करने से नाक से खून का गिरना बन्द होता है। आँवले का रस घी के साथ पीने से मूर्छा दूर होती है। आँवले का रस शहद के साथ प्रयोग करने से पित्तशूल दूर होता है। आँवले का रस अम्लपित्त को दूर करता है। आँवले खाने से शरीर में , जल्दी वृद्धावस्था नहीं आती।  

बहेड़ा

बहेड़ा  

विशेषकर बहेड़ा  श्वास , खाँसी , बवासीर , शोद , कोढ़ , कृमिरोग , उदार विकार , अफरा , गुल्म , प्यास , हिचकी , कामला , अजीर्ण , आनाह , प्लीहा , शूल , पथरी , यकृत , सूजाक , मूत्रघात इन रोगों में लाभप्रद है। उँगलियों का सड़ना भी बहेड़ा  के लगाने से दूर होता है। 

यह वृक्ष काफी लम्बा चौड़ा व ऊँचा होता है। यह पथरीली भूमि पर पैदा होता है। महुवा के पत्ते के सदृश्य इसके पत्ते होते हैं। इसका फूल छोटा होता है तथा फल जायफल से कुछ बड़ा होता है। 10 या 12 ग्राम तक इसका फल होता है। इसकी मात्रा 2 ग्राम तक है। 

लाभ व उपचार 

प्रयोग में इसके फल की छाल दी जाती है। इसकी गूदी लेप करने से दाह शान्त होता है। यह खाने में गरम है। लगाने में ठण्डा व रुखा होता है , नेत्रों के लिए गुणकारी होता है। इसका वक्कल खाँसी को दूर करता है। कृमि रोग और स्वर दोष को शान्त करता है। सर्दी , प्यास , वात और कफ को शान्त करता है। इसकी प्रतिनिधि छोटी हर्र है , अर्थात् जब बहेड़ा न मिल सके तो छोटी हर्र से काम चलाया जा सकता है। बहेड़े का अवगुण शहद के प्रयोग से दूर होता है। 

मंगलवार, 16 मई 2023

हर्र

 हर्र 

यह आम के वृक्ष के समान बड़ा होता है। वृक्ष के दो पत्ते आमने सामने मोटे और अमरुद के पत्तों के समान तथा कोमल लाल रंग के होते हैं। हर्र डेढ़ इंच तक लम्बी होती है। इसको सुखाने पर इसकी छाल पर खड़ी पाँच रेखायें हो जाती हैं। उत्तर भारत के कोकण में व गुजरात में इसकी पैदावार अधिक होती है। 

लाभ व उपचार 

साधारण जुलाब में इसे लेना लाभप्रद होता है। इसके अन्दर लम्बा बीज निकलता है हर्र जितनी नई हो उतनी ही अधिक गुणकारी होती है। हर्र के फल की छाल सब प्रयोगों में लें। हर्र की सात जाती है :- 1 . विजया , 2 . रोहिणी , 3 . पूतना , 4 . अमृता , 5 . अभया , 6 . जीवन्ती , 7 .  चेतकी , इसमें विजया हर्र का आकार तोम्बी के समान गोल होता है। यह विन्ध्याचल पर्वत पर उपजती है। रोहिणी हर्र गोल होती है , इसके बीज बड़े होते हैं। पूतना हर्र पतली रेखावाली होती है , इसके बीज बड़े होते हैं , यह हिमालय पर्वत पर उत्पन्न होती है। अमृता हर्र मोटी और रेखावाली होती है। उसमें गूदा बहुत होता है , गुठली छोटी होती है। यह किष्किन्धा के समीप पम्पासर में उत्पन्न होती है। अभया हर्र भी पम्पासर में उत्पन्न होती है। यह पाँच रेखावाली होती है। जीवन्ती हर्र महाराष्ट्र (सूरत)प्रदेश में उपजती है और सुवर्ण के समान पीली होती है। चेतकी हर्र हिमालय पर्वत पर होती है और तीन रेखाओं वाली होती है। विजया हर्र सब हर्रो से उत्तम होती है। इसको सब रोगों में देना चाहिये। पूतना हर्र लेप के काम में लेनी चाहिये। रोहिणी हर्र घाव के निमित्त काम में लेनी चाहिये। अभया हर्र नेत्र रोग में हितकारी है। जीवन्ती हर्र सब रोगों को हरती है। चेतकी हर्र चूर्ण बनाने हेतु काम में लेनी चाहिये। चेतकी हर्र दो प्रकार की होती है :- 1 . काली 2 . सफेद। काली एक अंगुल लम्बी और सफेद छः अंगुल लम्बी होती है। कोई हर्र खाने से , कोई सूघने से , कोई देखने से , कोई छूने से दस्त लाती है। मनुष्य , पशु आदि कोई भी चेतकी हर्र के नीचे छाया में जाकर खड़ा होता है , तो उसे दस्त हो जाते हैं। चेतकी हर्र के वृक्ष काबुल में पाये जाते हैं। चेतकी हर्र सुकुमार , दुर्बल शरीर , प्यास से युक्त और औषण से द्वेष करने वालों को सुखपूर्वक जुलाव लेने के लिए श्रेष्ठ होती हैं। 

उपरोक्त सातों हर्रो में विजया हर्र सबसे अधिक श्रेष्ठ होती है। यह सर्वत्र मिलती है और सब रोगों में हितकारी है। हर्र की मज्जा में मधुरता , स्नायु में अम्लता , परदे में तिक्तता , छिलके में कडुवापन और अस्थि में कसैलापन होता है। हर्र नई गोल , चिकनी ,भारी , जल में छोड़ने पर डूब जाने वाली होती है। भुनी हुई हर्र त्रिदोष को दूर करती है और बल बुद्धि तथा इन्द्रियों को प्रकाश देने वाली होती है। चबाकर खाई हुई हर्र अग्नि को बढ़ाती है। पिसी हुई हर्र खाने से मल की शुद्धि होती है। तली हुई हर्र खाने से संग्रहणी रोग दूर होता है। इसमें मीठा , कडुआ , कसैला रस पित्तनाशक है , खट्टा रस वातनाशक है और तिक्त , कटु , कसैला रस कफनाशक होता है। 

गुड़ के साथ सेवन करने से हर्र सर्व रोग नाशक है। घी के साथ सेवन करने से हर्र घात नाशक है। लवण के साथ सेवन करने से हर्र कफ को शान्त करती है। शहद के साथ सेवन करने से हर्र पित्त नाशक है। 

बसन्त ऋतु में शहद के साथ , ग्रीष्म ऋतु में गुड़ के साथ , वर्षा ऋतु में सेंधा लवण के साथ , शरद ऋतु में मिश्री के साथ , हेमन्त ऋतु में सोंठ के साथ , शिशिर ऋतु में पीपर के साथ हर्र का सेवन करें। 

औषधि के रूप में प्रयोग के लिए हर्र की छाल आधे ग्राम की मात्रा में सेवन करें। हर्र के अवगुण को नीबू का रस शान्त करता है। शहद चाटने से भी हर्र का उपद्रव शान्त हो जाता है। हर्र को 10 ग्राम से अधिक मात्रा में भी ली जा सकती है। हर्र गरम, खुश्क , अग्नि को प्रदीप्त करने वाली , व हल्की होती है। यह वायु और मल को नीचे उतारती है। एक हर्र जवा अर्थात् जो छोटी होती है उसको भूनकर प्रति दिन प्रातः नमक के साथ खाने से उदर विकार नहीं होता है। हर्र को प्रातः वैद्यजन सेवन करने के निमित्त स्वादिष्ट बताते हैं। हर्र को स्वादिष्ट इस प्रकार बनाऐं :- हर्र साफ बड़ी और नई हर्र को 10 ग्राम गाय के मठा में अथवा गरम जल में भिगोदें , तीसरे दिन निकाल कर उसमें से गुठली अलग कर सेंधा नमक , सोंठ , काली मिर्च , जीरा पीसकर अनुमान से भर देवें फिर चीनी मिट्टी के अमृतवान में भरकर कुछ देर धूप में रख छोड़ें। इसके सेवन से पेट विकार दूर हो जाते हैं। 

हर्र ,बहेड़ा , आँवला इनके मिक्सचर को त्रिफला कहते हैं। त्रिफला को संध्या के समय भिगो देवे , प्रातः छानकर उससे नेत्र धोवें तो सभी प्रकार के नेत्र सम्बन्धी रोग शान्त हो जाते हैं। सन्ध्या का भिगोया हुआ त्रिफला प्रातः छानकर नमक मिलायें। इसके पीने से खासी कफ रोग दूर हो जाता है। अकेली हर्र को जल के साथ घिस गरम कर पलक के ऊपर लेप करने से नेत्र रोग दूर हो जाता है। जो व्यक्ति चलने से थका हुआ हो या जिसे धातु विकार हो या जिसका रुधिर निकाला गया हो या जो गर्भिणी स्त्री हो , को हर्र नहीं खाना चाहिये। जिसको ज्वर आता हो उसको पीली हर्र नहीं खाना चाहिये। 

बुधवार, 3 मई 2023

सिंघाड़ा

 सिंघाड़ा 

इसकी बेल होती है जो तालावों , पोखरों में फैली होती है। यह हरे मोटे छिलके वाला अन्दर से सफेद फल वाला स्वाद में हल्का मीठा होता है। यह कच्चा या उवालकर खाया जाता है। 

लाभ व उपचार 

मर्दाना कमजोरी में 

शीघ्र पतन या वीर्य पतला हो गया हो तो सिंघाड़े को सुखाकर वारीक कूट पीसकर एक बड़ा चम्मच सुबह गाय के दूध के साथ सेवन करने से मर्दाना कमजोरी दूर होती है व वीर्य गाड़ा हो जाता है। 

दाद , खाज , खुजली में 

सिंघाड़े का निरन्तर सेवन करने से आराम मिलता है। 

प्रदर रोग में 

सूखे सिंघाड़े को पीसकर हलुवा बनावें। इस हलुवे को कम से कम 30 दिन तक खाने से प्रदर रोग ठीक हो जाता है। 

मंगलवार, 2 मई 2023

मौसमी

 मौसमी 

यह फल रोगियों के लिए एक प्राकृतिक वरदान है। 

मौसमी का रस खून को साफ करने की क्षमता रखता है।  अतः चर्मरोग से दुःखी रोगी एक -एक गिलास मौसमी का जूस दिन में 3 बार एक माह तक पीयें। 

लाभ व उपचार 

गर्भवती स्त्री के अन्दर कैल्शियम की कमी होती है। इस कमी को मौसमी का रस दूर करता है। 

टाइफाइड के रोगी को अधिक से अधिक मौसमी का रस देना चाहिए। इससे शारीरिक कमजोरी दूर होती है तथा इससे अन्तड़ियों पर बोझ भी नहीं पड़ता। दिल के रोगी को भी मौसमी का रस नलियों को साफ कर मनुष्य को शक्ति प्रदान करता है। 

सोमवार, 1 मई 2023

तरबूज

 तरबूज 

यह फल बाहर से हरा , अन्दर से लाल गुदा वाला व बीज काले रंग के होते हैं। यह तासीर में शीतल व गर्मी को दूर करने वाला होता है। 

लाभ व उपचार 

गर्मी से सिर दर्द

गर्मी से सिर दर्द वाले पुराने रोगी को सुबह एक गिलास तरबूज का रस मिश्री डालकर पीना चाहिए। 

जोड़ों के दर्द , पुरसी कब्ज , घुटनों में सूजन , पेशाब में जलन 

जोड़ों के दर्द , पुरसी कब्ज , घुटनों में सूजन , पेशाब में जलन रोगों में तरबूज के रस का सेवन करें। 

हाई ब्लड प्रेशर 

हाई ब्लड प्रेशर वाले रोगी को तरबूज के बीजों का रस प्रतिदिन सुबह पीने से रोग दूर हो जाता है। तरबूज के रस में कुरकुरवोसाइट्रिन नाम का तत्व होता है , जिसकी शक्ति से रक्त कोशिका नली चौड़ी हो जाती है। इसका प्रभाव गुर्दों पर भी पड़ता है , जिससे खून का दबाव कम हो जाता है।  

आलू बुखारा

 आलू बुखारा 

यह फल गर्मी के दिनों में आता है। इसकी तासीर ठण्डी होती है। 

लाभ व उपचार :-

बवासीर रोग में 

आलू बुखारा अधिक मात्रा में सेवन करें। 

पेचिस संग्रहणी रोग में 

आलू बुखारे का रस निकालकर दिन में 4 बार पीयें। 

खून की कमी व जोड़ों के दर्द में 

आलू बुखारे का रस निकालकर दिन में 3 बार पीयें। 

दाऊदी पीले फूल वाली

दाऊदी पीले फूल वाली   पीले फूल की दाऊदी के पत्ते पीस कर गाय के मट्ठा में उवाल लें। फिर और उसको जहर बाद के ऊपर बाँधे तो पांच छः दिन में फोंड़ा...